Eminent educationist Nasir Ahmad Siddiqui retires | एक टीचर छात्रों को सिर्फ पढ़ाता नहीं है बल्कि वो सही मायने में देश के भविष्य और एक प्रगतिशील समाज का निर्माण करता है। ये बात वरिष्ठ शिक्षक नसीर अहमद सिद्दीकी के लिए शत-प्रतिशत सही साबित होती है। नसीर अहमद सिद्दीकी ने आजीवन शिक्षा को मिशन बनाकर समाज में सकारात्मक बदलाव के लिए अभूतपूर्व काम किया और एक मिसाल कायम की।
दिल्ली नगर निगम गर्ल्स स्कूल, कटवारिया सराय के प्राचार्य नसीर अहमद सिद्दीकी ने आज शिक्षक के तौर पर अपने शानदार अध्यापन करियर का समापन किया। तीन दशकों से अधिक समय तक शिक्षा क्षेत्र में सेवाएं देने के बाद उनका सेवानिवृत्त होना प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के एक गौरवशाली युग का अंत माना जा रहा है।
शिक्षा जगत में 6 दशकों की शानदार यात्रा
सिद्दीकी ने 11 अक्टूबर 1995 को दिल्ली नगर निगम में शिक्षक के रूप में अपनी सेवा की शुरुआत की और 31 जुलाई 2025 तक अध्यापन से जुड़े रहे। 24 मार्च 2022 को उन्हें प्राचार्य पद की ज़िम्मेदारी सौंपी गई। डीएमसी से पहले वे उत्तर प्रदेश के विभिन्न शिक्षण संस्थानों जैसे बी.एन.वी. इंटर कॉलेज, राठ और अखंड आदर्श विद्यालय, पवई में अध्यापन कर चुके थे।
बुंदेलखंड से जुड़ाव और शैक्षणिक पृष्ठभूमि
उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के पुनाहुर गांव में जन्मे सिद्दीकी का बचपन चित्रकूट, हमीरपुर और झांसी जैसे जिलों में बीता। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा ग्रामीण स्कूलों से प्राप्त की और आगे की पढ़ाई बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, पंतनगर विश्वविद्यालय और इग्नू दिल्ली से की। वे शिक्षा, दर्शन, अंग्रेज़ी, कृषि, पत्रकारिता और जनसंचार जैसे विषयों में स्नातकोत्तर डिग्रियां रखते हैं।
परिवार और निजी जीवन
साल 1995 में उन्होंने बांदा निवासी नाज़मी बानो से विवाह किया। उनके एक बेटा और एक बेटी हैं। उनकी पत्नी नाज़मी बानो दक्षिण दिल्ली में ‘सोच’ नाम के एक एनजीओ के माध्यम से विधवाओं और परित्यक्त महिलाओं के लिए महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में सक्रिय हैं। सिद्दीकी एक सादगी पसंद, शाकाहारी व्यक्ति हैं, जो पैदल चलना और स्थानीय भोजन को प्राथमिकता देते हैं।
शिक्षा के दायरे से परे कार्य
सिद्दीकी का योगदान केवल कक्षा तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने आरटीआई और कैंसर जागरूकता अभियानों तथा वंचित युवाओं के लिए कौशल विकास कार्यक्रमों का नेतृत्व किया। ‘टीच इंडिया’ जैसे अभियानों के ज़रिए उन्होंने ग्रामीण और शहरी युवाओं को मुफ्त अंग्रेज़ी प्रशिक्षण और 100% रोजगार योग्य बनाने में अहम भूमिका निभाई।
उनकी सक्रियता ने बुंदेलखंड में सूखे की समस्या, किसानों की आत्महत्याएं और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण जैसे मुद्दों पर राष्ट्रीय ध्यान केंद्रित किया, जिससे केन-बेतवा लिंक और बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे जैसी परियोजनाएं सामने आईं। इसके अलावा, उन्होंने 1990 के दशक में फ्रांस से चुराई गई वृषणन योगिनी मूर्ति को भारत लाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सम्मान और उपलब्धियाँ
सिद्दीकी को उनके उल्लेखनीय कार्यों के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाज़ा गया है, जिनमें शामिल हैं:
- रोटरी इंटरनेशनल अवार्ड (1998)
- राज्य शिक्षक सम्मान, दिल्ली सरकार (2019)
- अरज़ू वर्ड्स यूएसए द्वारा पत्रकारिता में उत्कृष्टता (2020)
- अंबेडकर शिक्षक पुरस्कार (2024)
- सामाजिक-सांस्कृतिक योगदान
‘बाल चौपाल’ और ‘संदेश’ जैसी पत्रिकाओं के संपादन के माध्यम से उन्होंने बच्चों में साहित्य और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाने का कार्य किया। ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन पर शिक्षक-अभिनेता के रूप में उनका योगदान उल्लेखनीय रहा है। वे नाटकों का निर्देशन, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और खेल आयोजनों का भी संचालन करते रहे हैं।
सेवा की अमिट छाप
औपचारिक शिक्षण से इतर भी उन्होंने अनेक सामाजिक कार्यों में भागीदारी निभाई – जैसे मुफ्त नेत्र शिविरों का आयोजन, अनाथ लड़कियों की शादी करवाना और रोजगार मेलों का संचालन। उनके प्रयासों ने दिल्ली और बुंदेलखंड के हजारों लोगों को प्रभावित किया है। सिद्दीकी की यह सेवा-साधना कई पीढ़ियों के विद्यार्थियों और वंचित समुदायों के लिए प्रेरणा बनकर उभरी है, जिसने भारतीय शिक्षा और समाज में एक स्थायी छाप छोड़ी है।